मानहानि क्या है ? इसके संबंध में भारतीय कानून के प्रावधान क्या हैं ?What is defamation? What are the provisions of Indian law in relation to this?
इस पोस्ट के माध्यम से हमने बताने का प्रयास किया है कि What is defamation / Rights against defamation मानहानि क्या है तथा मानहानि के खिलाफ अधिकार क्या है, यदि किसी व्यक्ति की मानहानि होती है तो उसके लिए क़ानून में क्या प्रावधान हैं मानहानि कारित करने वाले व्यक्ति के ख़िलाफ़ क्या क़ानून बनाए गये है तथा उसका उपयोग कैसे किया जा सकता है, एवं इसके प्रकार क्या हैं तथा किस पर मानहानि का मुक़दमा किया जा सकते है एवं किसपर नहीं किया जा सकता है तो आइए विस्तार से जानते है :-
मानहानि क्या है?
भारतीय दंड सहिंता 1860 की धारा 499 मानहानि की परिभाषा प्रस्तुत करती है- किसी व्यक्ति जो आपका सगा संबंधी न हो उसके बारे में बुरी बात अपशब्द बोलना, अपमानजनक पत्र भेजना, किसी की प्रतिष्ठा गिराने वाली अफवाह फैलाना, अपमानजनक टिप्पणी प्रकाशित या प्रसारित करना। पति या पत्नी, परिवार के सदस्य एवं सगे सम्बन्धियों को छोड़कर किसी भी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति से किसी अन्य व्यक्ति के बारे में कोई अपमानजनक बात कहना, अफवाह फैलाना या अपमानजनक टिप्पणी प्रकाशित करना जिससे उसकी छवि ख़राब या धूमिल हो मानहानि माना जाता है।
मानहानि के प्रकार-
किसी मृत व्यक्ति पर कोई ऐसा लांछन लगाना जो उस व्यक्ति के जीवित रहने पर उसकी ख्याति को नुकसान पहुंचाता । एवं परिवार या निकट संबंधियों की भावनाओं को चोट पहुंचाता ।किसी कंपनी , संगठन या व्यक्तियों के समूह के बारे में भी ऊपर लिखी हुयी सभी बातें सामान रूप से लागू लागू होती है । किसी व्यक्ति पर व्यंग्य के रुप में कही गयी बातें मानहानिकारक बात को छापना या बेचना आदि सभी कृत्य मानहानि की श्रेणी में आती है ।
सच्ची टिप्पणी मानहानि नहीं :-
यदि किसी व्यक्ति के बारे में अगर सच्ची टिप्पणी की गयी हो और वह सार्वजनिक हित में किसी लोक सेवक के सार्वजनिक आचरण के बारे में हो अथवा उसके या दूसरों के हित में अच्छे इरादे से की गयी हो अथवा लोगों की भलाई को ध्यान में रखते हुए उन्हें आगाह करने के लिए हो , तो इसे मानहानि की श्रेणी में नहीं माना जायेगा ।
मानहानि के लिए दंड- भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के अंतर्गत मानहानि के लिए दो वर्ष तक का सादा कारावास एवं जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है। यह असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। साधारण परिवाद द्वारा आपराधिक मामलों को दर्ज किए जाने हेतु मजिस्ट्रेट को संज्ञान दिया जाता है।
मानहानि के लिए आप आपराधिक मुकदमा चलाकर मानहानि करने वाले व्यक्तियों और उसमें शामिल होने वाले व्यक्तियों को न्यायालय द्वारा दंडित करवा सकते हैं ।यदि मानहानि से किसी व्यक्ति की या उसके व्यवसाय की या दोनों को कोई वास्तविक हानि हुई है तो उसका हर्जाना प्राप्त करने के लिए दीवानी दावा न्यायालय में प्रतिवेदन प्रस्तुत कर हर्जाना प्राप्त किया जा सकता है । मानहानि करने वाले के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए दस्तावेजों के साथ सक्षम क्षेत्राधिकारी के न्यायालय में लिखित शिकायत भी करनी होगी। न्यायालय शिकायत पेश करने वाले का बयान दर्ज करेगा, अगर आवश्यकता हुई तो उसके एक-दो साथियों के भी बयान दर्ज कराया जाएगा । इन बयानों के आधार पर यदि न्यायालय समझता है कि मुकदमा दर्ज करने का पर्याप्त आधार उपलब्ध है तो मुकदमा दर्ज कर अभियुक्तों को न्यायालय में उपस्थित होने के लिए समन जारी कर दिया जाएगा ।
न्यायालय शुल्क :-
आपराधिक मामले में जहां नाममात्र का न्यायालय शुल्क देना होता है । वहीं हर्जाने के दावे में जितना हर्जाना मांगा गया है , उसके 5 से 7.50 फीसदी के लगभग न्यायालय शुल्क देना पड़ता है । जिसकी दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। मानहानि के मामले में वादी को केवल यह सिद्ध करना होता है कि टिप्पणी अपमानजनक थी एवं सार्वजनिक रुप से की गयी थी । टिप्पणी झूठी थी यह सिद्ध करने की जरुरत बचाव पक्ष की ही होती है अपना बचाव करने के लिए यह शाबित करना कि वादी के खिलाफ उसने जो टिप्पणी की थी, वह सही एवं सच थी । दुर्भावनापूर्ण अभियोजन से बचाव अगर किसी निर्दोष व्यक्ति को अभियुक्त को बना दिया जाय और वह सिद्ध कर सके कि उसे बदनाम या ब्लैकमेल करने जैसे बुरे इरादे से उसके खिलाफ अभियोग लगाया गया था तो वह अदालत में मामला दर्ज कर अभियोग लगाने वाले से मुआवजा भी मांग सकता है । यह दावा मानसिक तथा आर्थिक दोनों प्रकार के हानि की भरपाई के लिए हो सकता है। अगर किसी व्यक्ति को बुरे इरादे से सिविल मुकदमें में फंसाया जाय तो वह मामला दर्ज कर मुआवजे की मांग कर सकता है ।
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धन्यवाद
द्वारा – रेनू शुक्ला, अधिवक्ता / समाजसेविका
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