मामले में सुनवायी करते हुए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा यह साफ़ शब्दों में कहा गया है कि जो व्यक्ति स्वेच्छा खुद नौकरी नही करता है या छोड़ देता है वह भरण-पोषण का दावा करने का हकदार नहीं माना जायेगा वह अपनी पत्नी से भरण-पोषण का दावा करने योग्य है यदि उसकी पत्नी वर्तमान में कमा रही है
केरल उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया कि अधिनियम की धारा 25 में अदालत पति अथवा पत्नी दोनो में से जो जरूरतमंद हो उसको मामलों की सुनवाई के पश्चात जो उचित लगता है वह स्थायी गुजारा भत्ता (एकमुस्त) रखरखाव की अनुमति प्रदान करता है
रखरखाव पाने के लिए पति को यह साबित करना होगा कि वह वर्तमान में श्रम करने और कमाने में स्थायी रूप से अक्षम है तो तभी वह मेंटेनेंस क्लेम कर सकता है
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मामले की सुनवायी करते हुए – द्वारा नांदेड़ दीवानी अदालत के दो आदेशों को बरकरार रखते हुए यह फ़ैसला सुनाया जिसमें शिक्षक के रूप में कार्य कर रही पत्नी को अपने पति के लिए 3,000 रुपये भरण-पोषण देने का आदेश दिया जबकि उनका तलाक 2015 में हो गया था।
जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में जस्टिस आर सेठी की सिंगल बेंच की सुनवायी का है यह मामला कुछ उन शुरुआती मामलों में से एक माना जाता है जो पत्नी द्वारा पति के भरण-पोषण से संबंधित है ।
दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का फैसला बरकर रखा जिसमे याचिकाकर्ता के लिए पति को भरण-पोषण हेतु 20,000/- रुपये प्रति माह एवं मुकदमे की फीस के रूप में 10,000/- रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया गया था साथ ही प्रतिवादी के उपयोग हेतु एक ज़ेन कार भी प्रदान करने का आदेश दिया हुआ था