स्त्रीधन पर सिर्फ बधू का अधिकार समय पर न लौटने पर होगी सात वर्ष की जेल / Only the rights of Badhu will not be returned on time for imprisonment for seven years IPC 405/406
समाज में शादी विवाह की अहम भूमिका रही है यह एक सामाजिक रीति के साथ साथ पवित्र बंधन भी माना जाता है इस अवसर पर वधु पक्ष द्वार नव दम्पत्ति को दिए जाने वाले सामान, जो स्वेक्षा से दिए परिवार वालों को दिए गये हो गिफ़्ट कहलाते है तथा बधू को दिया गया सामान ज़ेवर एवं समस्त चल अचल सम्पत्ति स्त्रीधन कहलाता है भारत में हर साल हजारों – लाखों कन्यायं एवं बहुएं दहेज प्रथा जैसे कुरीति का प्रत्यक्ष एवं परोक्ष शिकार होतीं आ रही हैं। शादी और उसके बाद वधु को दिए जाने वाले गहने इत्यादि उपहार स्त्री धन कहलाता है पर यदि यह उपहार वधु पक्ष द्वारा दिया गया हो। वर पक्ष द्वारा दिए गये गिफ़्ट रूपी समान को भी इसमें शामिल किया जाता है।इसके साथ ही साथ जोर ज़बरदस्ती एवं डरा धमका कर एवं बलपूर्वक या माँगकर लिया गया सामान दहेज की श्रेणी में आता है।
महिलाओं के स्त्री धन पर हक़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के हक में बड़ा फैसला देते हुए कहा है कि शादी के समय मायके एवं ससुराल से तोहफे में मिले सारे सामान पर सिर्फ महिला का हक होता है। अगर वह कोर्ट के कहने पर पति से अलग रह रही हो या उसके साथ रहती हो और तलाक हुआ हो या न भी हुआ हो, तब भी वह स्त्रीधन लेने के लिए दावा कर सकती है।
अदालत के अनुसार पति एवं उसके रिश्तेदारों का स्त्रीधन पर कोई अधिकार नहीं होता। वे सिर्फ हिफाजत के लिए उसे अपने पास रख सकते हैं। अगर महिला के माँगने पर वे उसे नहीं लौटाते तो यह घरेलू हिंसा एवं बधू का अधिकार उसे न देने की श्रेणी में आता है। इसके लिए पति एवं रिश्तेदारों पर आपराधिक कार्रवाई की जा सकती है। स्त्रीधन किसी भी हाल जॉइंट प्रॉपर्टी नहीं बन सकता। मुश्किल समय में पति पत्नी की परमिशन से इसका इस्तेमाल कर सकता है लेकिन उस चीज या उसकी कीमत जितनी रकम लौटाना पति की नैतिक जिम्मेदारी भी होती है।
शादी के वक्त लड़की को पैरंट्स, ससुराल पक्ष एवं दोस्त-रिश्तेदारों द्वारा जो गिफ्ट और गहने दिए जाते हैं, वे स्त्रीधन कहलाता है। पति-पत्नी के कॉमन यूज के लिए दिया गया फर्नीचर, टीवी आदि सामान भी स्त्रीधन होता है। इन पर पूरी तरह लड़की का अधिकार होता है। इसे दहेज नहीं माना जाता। स्त्रीधन न लौटाने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 405 के अनुसार, जो कोई अपने सुपुर्द सम्पत्ति या सम्पत्ति पर प्रभुत्व होने पर उस सम्पत्ति का बेईमानी से गबन करता है या उसे अपने उपयोग में संपरिवर्तित कर लेता है उसके द्वारा किए गये किसी अभिव्यक्त या निहित वैघ अनुबंध का अतिक्रमण करके बेईमानी से उस सम्पत्ति का उपयोग या व्ययन करता है, वह आपराधिक विश्वासघात की श्रेणी में आता है। जिसके अंतर्गत IPC की धारा 405 में सजा एवं जुर्माने का प्रावधान है। इसके साथ साथ IPC (आईपीसी) की धारा 406 के अंतर्गत विश्वास का आपराधिक हनन OR “criminal breach of trust”. के अंतर्गत सजा एवं जुर्माना से दंडित किया जाता है ।
जैसा कि समाज में महिलाएँ अब पढ़ लिखकर आगे बढ़ रहीं हैं तथा महिलाएं अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी सीख रही हैं हमें महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ महिलाओं के विकास के कई प्रकार के आयामों को भी देखना होगा तथा उनसे पारिवारिक होना भी आवश्यक है। कानून के तहत महिलाओं को कई लचीले एवं सार्थक अधिकार मिले हुए हैं, जिन पर हम खुल कर बात नहीं कर पाते हैं क्योंकि हमको उस बारे में अधिक जानकारी नहीं होती और न हम खुद एवं ना महिलाओं को जागरूक करना चाहते चाहते हैं । महिलाएं आज के भारत में भी अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख ही रहीं हैं, साथ ही साथ कई प्रकार की समस्याओं का सामना भी कर रहीं हैं जिसमें भेदभाव घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, सम्पत्ति अधिकार, विवाह एवं तलाक, साइबर बुल्लिंग आदि शामिल है ।
इसी तरह महिलाओं के तमाम अधिकारों में से एक है सम्पत्ति से जुड़ा हुआ अधिकार जो शादी में मिला हो किसे स्त्रीधन कहा जाता है इस पोस्ट के माध्यम से स्त्रीधन से जुड़े महिलाओं के अधिकार के बारे में चर्चा की जाएगी साथ उनसे कैसे निपटा जा सकता है इसकी भी व्याख्या की जाएगी।
स्त्रीधन और दहेज़ में फर्क़ :-
शादी के वक्त जो उपहार, जेवर, आदी लड़की को दिए जाते हैं, उसे स्त्रीधन कहते हैं। इसके अलावा लड़के एवं लड़की, दोनों को जो फर्नीचर, टीवी या दूसरी चीजें दी जाती हैं, वे भी स्त्रीधन के दायरे में ही आती हैं। स्त्रीधन पर स्त्री का पूरा अधिकार सिर्फ़ स्त्री का होता है तथा ये दहेज नहीं माना जाता है। लेकिन शादी के वक्त लड़के के पक्ष को दिए जाने वाले जेवर, कपड़े, आदि दहेज के दायरे में आते हैं।
महिला अपने स्त्रीधन की मालिक है और उस पर उसका पूरा हक़ है। यह उसका अपना हक़ है छीना नहीं जा सकता है । अगर किसी महिला का स्त्रीधन उसकी मर्जी के बिना कोई और रख ले या शादी के तीन माह बाद भी बधू को हस्तांतरित न करें तो उसके विपरीत कार्यवाही का विधान है जो धारा 14, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अधीन आता है।
महिला अपने स्त्रीधन की सुरक्षा कैसे कर सकती है?
- महिलाओं को अपने सभी स्त्रीधन की एक सूची बनानी चाहिए तथा इसे विभिन्न श्रेणियों में विभाजित करना चाहिए जैसे – नकदी, आभूषण, संपत्ति, अन्य कीमती सामान, आदि।
- अपने स्त्रीधन को इस तरह स्टोर करें कि आपका उस पर नियंत्रण हो। उदाहरण के लिए- अपने स्वयं के बैंक लॉकर में या संयुक्त लॉकर में जिसे आप एक्सेस भी कर सकते हैं, जिसपर किसी प्रकार का किसी और कोई हस्तक्षेप न हो।
- यदि किसी महिला के पति का परिवार आपके स्त्रीधन को लेने की कोशिश करता है, तो दबाव महसूस न करें। उन्हें बताएं कि आप इसे किसी को नहीं देंगे। यदि वे आपको परेशान करने की कोशिश करते हैं, तो आप तुरंत उत्पीड़न के लिए पुलिस शिकायत दर्ज कर सकते हैं (धारा 498 ए भारतीय दंड संहिता के तहत)।
- यदि आपको लगता है कि आपका स्त्रीधन आपके वैवाहिक घर में सुरक्षित नहीं है, तो इसे अपने माता-पिता की तरह किसी ऐसे व्यक्ति के साथ स्टोर करें, जिस पर आपको भरोसा है।
इस पोस्ट के माध्यम से मैंने बताने का प्रयास किया है की स्त्री धन क्या होता है तथा उस से सम्बंधित अधिकार क्या हैं एवं किसके है महिलाएँ इसका बचाव कैसे कर सकती हैं। स्त्रीधन क्या है और इससे जुड़े कई सारे क्या तथ्य हैं, जो अभी भी महिलाओं को पूरी तरह से पता नहीं है और वे इसके प्रति जागरूक भी नही हैं और इसलिए वे अपने हक़ के खिलाफ आवाज़ भी नहीं उठापाती हैं । मेरा यह लेख लिखने का बस एक ही उद्देश्य है कि महिला अपने हक़ के लिए जागरूक बनें तथा भारत की न्यायिक व्यवस्था के अधीन अपना हक़ लेने में हिचकिचाएं नहीं।यदि कोई उनके हक़ को हनन करने का प्रयास करे तो उसके विरुद्ध क़ानून का प्रयोग करें। ताकि महिला भी हक़ से जीने का अधिकार प्राप्त कर सके।
आशा करते हैं हमारा लेख आपको पसंद आया होगा इस तरह के किसी अन्य मुद्दे पर जानकारी के लिए आप हमें ईमेल या कमेंट करके पूँछ सकते है ।
धन्यवाद
द्वारा – रेनू शुक्ला, अधिवक्ता / समाजसेविका
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