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Home Legal News

कई ऐतिहासिक जजमेंट जिसमें पत्नी ने पति को दिया भरण पोषण

भरण पोषण
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इस लेख के माध्यम से जानते है  कि कैसे पति भी अपनी पत्नी से भरण पोषण ले सकता है कुछ ऐतिहासिक  जजमेंट के साथ 

इस पोस्ट के माध्यम से हम जानेंगे भरण पोषण (रखरखाव) कानून हिंदू विवाह अधिनियम के  सेक्शन 24- 25 के बारे में जिसके तहत पति पत्नी दोनो को एक दूसरे से समान रूप से  भरण पोषण पाने का अधिकार देता है यह  लैंगिक-समानता का ध्यान रखते हुए बनाया गया क़ानून है क्योंकि यह पति और पत्नी दोनों को बिना किसी भेदभाव के  समान रूप से भरण-पोषण पाने का अधिकार देता है। जबकि अन्य क़ानूनों में यह समानता नहीं है  कुछ कानून  में केवल पत्नियों को यह अधिकार दिए गये हैं,  जैसे सीआरपीसी की धारा 125, आदि ।

पत्नी को लगभग सभी मामलों में पति से भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार प्राप्त है, जबकि पति के मामले में स्थिति ऐसी नहीं है। पतियों को यह अधिकार प्रदान करने  वाला सिर्फ एक मात्र  कानून है, जिसमें भी बहुत सारी नियम एवं शर्तें शामिल हैं । लेकिन ज़रूरत है अब क़ानून में कुछ बदलाव करके नए  कानून बनाए जाने की और  लागू करने की भी  ताकि पति भी कई माध्यम से अपने हक़ अधिकारों का दावा करके समान न्याय पाने में सक्षम हो सके  जिससे समाज में क़ानूनी समानता और लोगों का न्याय प्रणाली पर विश्वास बना  रहे।

जैसे कि महिला के हित में तमाम क़ानून बनाए गये है और वह इसका उपयोग भी बहुत आसानी से कर लेती है पर पति के मामले में ऐसा नही होता है चाहे वह किसी भी मामले में क्यों ना हो, अब भरण पोषण का मामला हाई ले लीजिए, पत्नी को कोर्ट से भरण पोषण/ एलिमनी आसानी से मिल जाती है बिना किसी नियम शर्त के, पर पति को पत्नी से भरण पोषण पाने के लिए  कई  शर्तें निर्धारित की गई हैं जिन्हें पूरा करने के बाद ही  पति अपनी पत्नी से भरण पोषण पाने का हक़दार माना जाता है । पति दावा भी तभी कर सकता है जब उसके पास भरण-पोषण का कोई भी माध्यम ना बचा हो और उसको  अपना जीवन यापन करने के लिए इसकी सख्त जरूरत हो  तथा वह कमाई करने में अपनी अक्षमता सबूत के साथ साबित कर सकता हो  । जैसे कोई मानसिक या शारीरिक असमर्थता जिसे मेडिकली साबित किया  जा सकता हो, मानसिक रूप से बीमार या शारीरिक रूप से चलने फिरने में असमर्थ हो  तभी दावा  करने में सक्षम माना जाता है एक समर्थ स्वस्थ एवं सामान्य व्यक्ति निष्क्रिय रहकर इस तरह के अधिकार का दावा नहीं कर सकता है ।

यशपाल सिंह ठाकुर बनाम श्रीमती  अंजना राजपूत 

यशपाल सिंह ठाकुर बनाम श्रीमती अजना राजपूत AIR (2001)MP 67 “,  के मामले में  सुनवायी करते हुए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा  यह साफ़ शब्दों में कहा गया है कि जो व्यक्ति स्वेच्छा से काम करने एवं  कमाई करने से खुद को अक्षम बनता  है यानी खुद नौकरी नही करता है या छोड़ देता है  वह भरण-पोषण का दावा करने का हकदार नहीं माना  जायेगा । इसलिए, यदि पति कमाने  में सक्षम है तो उसे अपने लिए भरण पोषण खुद करना चाहिए किसी शारीरिक या मानसिक अक्षमता के कारण यदि पति वर्तमान में पैसे कमाने में असमर्थ है , तो वह अपनी पत्नी से भरण-पोषण का दावा  करने  योग्य माना  जायेगा ।चाहे वह किसी भी वजह से क्यों न हो ।

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 24 पेंडेंट लाइट के रखरखाव और पति को कार्यवाही के खर्च देने का  प्रावधान करती है। तथा इसी अधिनयम की धारा 25 पति को स्थायी गुजारा भत्ता एवं भरण-पोषण पाने का अधिकार देती  है। “रखरखाव” शब्द का मतलब -भोजन, आश्रय, कपड़े एवं  अन्य घरेलू आवश्यकताएं शामिल होती हैं, जिसकी ज़रूरत  किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन को बनाए रखने के लिए अनिवार्य होती है ।

अधिनियम की धारा 24 के तहत , एक ” योग्य व्यक्ति ” जिसके पास अपने रहने और समर्थन के लिए कोई  आय का श्रोत वर्तमान में मौजूद  नहीं है तथा  कार्यवाही के लिए आवश्यक खर्च भी जुटा पाने में असमर्थ है  वह अपनी पत्नी से भरण-पोषण का दावा करने योग्य  है यदि उसकी पत्नी वर्तमान में कमा रही है और देने में सक्षम पायी जाती है ।

अधिनियम की धारा 25 पति को स्थायी गुजारा भत्ता एवं भरण-पोषण पाने का अधिकार देती है । जिसमें  पत्नी की आय एवं  संपत्ति को ध्यान में रखते हुए पति के जीवनकाल तक ऐसी सकल राशि  मासिक / आवधिक राशि का भुगतान करने हेतु  बाध्य करती है। भविष्य में परिस्थितियों में कोई परिवर्तन आने पर   न्यायालय आदेश को संशोधित करने का अधिकार रखती है ।

आदेश की प्रति – Click Here

वी.एम. निव्या बनाम एन.के. शिव प्रसाद 2017

V.M. Nivya v/s N.K. Shiva Prasad 2017 (2) केएलटी 803 के मामले में , केरल उच्च न्यायालय द्वारा यह साफ़ शब्दों में कहा गया  कि अगर पति को काम करने में असमर्थता की वजह से  रखरखाव दिया जाता है, तो यह पति के आलस्य को बढ़ावा देना माना जायेगा, जोकि समाज और उसके हित में नही होगा । इसलिए रखरखाव पाने के लिए पति को यह साबित करना होगा कि वह वर्तमान में श्रम  करने और कमाने में स्थायी रूप से अक्षम है; तभी वह मेंटेनेंस क्लेम कर सकता है अन्यथा नहीं । अधिनियम की धारा 25 में अदालत पति अथवा  पत्नी दोनो में से जो  जरूरतमंद हो उसको मामलों की सुनवाई के पश्चात जो उचित लगता है वह  स्थायी गुजारा भत्ता (एकमुस्त)  रखरखाव की अनुमति प्रदान करता है । अदालत प्रतिवादी / आवेदक को ऐसी सकल राशि / मासिक राशि / आवधिक राशि का भुगतान करने का निर्देश देने के लिए स्वतंत्र है, जो आवेदक के जीवनकाल से अधिक नहीं होनी चाहिए । रखरखाव का फैसला करते समय अदालत प्रतिवादी एवं आवेदक दोनो की आय और अन्य संपत्तियों  को ध्यान में रखकर हाई फ़ैसला सुनती है ।ताकि दोनो का जीवन सुचारु रूप से चल सके तथा किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न न हो, न्यायालय द्वारा आदेश पारित होने के बाद यदि दोनो में से कोई पक्षकार विरोध /असहमति दिखाते हैं तो वह  अपीलीय न्यायालय में जाने के लिए स्वतंत्र हैं यदि किसी भी समय किसी भी पक्ष की स्थिति/ परिस्थितियों में किसी भी तरह का परिवर्तन पाया जाता है , तो न्यायालय किसी भी एक पक्ष के कहने पर दिए गये आदेश को संशोधित या रद्द करने का अधिकार रखता  है।

आदेश की प्रति – Click Here 

भाग्यश्री बनाम जगदीश 2021

बॉम्बे हाईकोर्ट भाग्यश्री बनाम जगदीश मामले की सुनवायी करते हुए –  द्वारा नांदेड़ दीवानी अदालत के दो आदेशों को बरकरार रखते हुए यह फ़ैसला सुनाया  जिसमें शिक्षक के रूप में कार्य कर रही  पत्नी को अपने पति के लिए 3,000 रुपये भरण-पोषण देने का आदेश  न्यायालय द्वारा देकर कोर्ट को  अगस्त 2017 से भरण-पोषण न देने की वजह से  स्कूल प्र‌िंसपल को यह आदेश दिया गया था की वह महिला की तनख्वाह से 5000 रुपये काटने का आदेश  जारी करे । जस्टिस भारती डांगरे  द्वारा  पत्नी की इस दलील को खारिज कर दिया गया कि दंपति की शादी 23 साल पुरानी है और शादी 2015 में तलाक की डिक्री के बाद ख़त्म हो चुकी हैं , इसलिए पति अब मासिक भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकता है क्यूँकि वर्तमान में वह पति पत्नी नहीं हैं ।अदालत द्वारा  हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 और 25 का हवाला देते हुए कहा कि यह अधिनियम की धाराएँ  जरूरतमंद पति /  पत्नी को अंतरिम या स्थायी गुजारा भत्ता का दावा करने का अधिकार प्रदान करते हैं, चाहे फिर वैवाहिक अधिकारों की बहाली या तलाक की एक डिक्री पारित की जा चुकी  हो फिर भी ।

हिंदू विवाह अधिनियम “1955  की धारा 25 के दायरे को पति एवं  पत्नी के बीच पारित तलाक की एक डिक्री पर लागू न करके सीमित करना उचित नहीं  होगा  कोई भी निर्धन (जरूरतमंद) प‌ति /  पत्नी के लिए एक लाभकारी प्रावधान होने के नाते भरण-पोषण/स्थायी गुजारा भत्ता का प्रावधान पति या पत्नी, दोनो में से किसी एक द्वारा मांगा जा सकता है, यदि धारा 9 – 13 द्वारा शासित किसी भी प्रकार की एक डिक्री पारित हो चुकी है एवं  अदालत के इस तरह के डिक्री से विवाह बंधन टूट चुका है या , बाधित हो चुका है  या प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया गया है।

सम्बंधित मामले में पक्षकारों की शादी 17 अप्रैल, 1992 को हुआ था । जिसके बाद पत्नी पत्नी ने 2015 में क्रूरता का आरोप लगाते तलाक़ की माँग की और न्यायालय से तलाक़ मिल भी गया ।  तलाक होने के बाद पति द्वारा पत्नी से प्रति माह 15,000 रुपये गुजारा भत्ता के रूप में  मांग करते हुए याचिका लगायी । जिसमें पति ने दावा किया कि उसके पास वर्तमान में आय का कोई स्रोत मौजूद नही है, जबकि उसकी पत्नी एमए, बीएड हैं तथा  एक विश्वविद्यालय में वर्तमान में कार्यरत भी है। जिसमें पति ने यह भी दावा किया  कि पत्नी को डिग्री दिलाने एवं  प्रोत्साहित करने हेतु  उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षा को अलग रखकर घर का प्रबंधन भी किया तथा इसके बाद पत्नी से मिले तलाक़ से  उन्हें बहुत शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है । जिसकी वजह से अब उसका स्वास्थ्य बहुत ख़राब हो गया है और वर्तमान में उसके पास  कोई अचल संपत्ति भी मौजूद नहीं है । जबकि पत्नी ने दावा किया कि पति एक किराने की दुकान चलाता था और इसके  साथ-साथ एक ऑटो रिक्शा भी मौजूद है जिसे  किराये पर देकर पति आय अर्जित करता रहा है।

सभी दलीलों को सुनकर न्यायालय ने यह फ़ैसला सुनाया  कि अधिनियम की धारा 24 के तहत पति की याचिका जिसके द्वारा पति ने अंतरिम मुकदमेबाजी खर्च का दावा किया है  विचारणीय मानी जाएगी । इसलिए, जब तक पति को स्थायी गुजारा भत्ता याचिका पर फैसला नहीं आ जाता है तब तक उसे  उसे 3000 रुपये भरण-पोषण भुगतान का आदेश दिया जाता है ।

आदेश की प्रति – Click Here 

ललित मोहन बनाम तृप्ता देवी (1988)

ललित मोहन बनाम तृप्ता देवी का मामला  जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में जस्टिस आर सेठी की सिंगल बेंच की सुनवायी का है यह मामला  कुछ उन शुरुआती मामलों में से एक माना जाता है  जो पत्नी द्वारा पति के भरण-पोषण से संबंधित है ।

सम्बंधित मामले में पति पत्नी ने दावा किया कि जोड़े का विवाह 13 अक्टूबर 1976 को हिंदू रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार किया गया था । जिसके एक वर्ष के बाद पति/पत्नी एक भयानक कार दुर्घटना का  शिकार हुए और अपनी मानसिक स्थिरता खो बैठे। जिसके बाद पार्टियों के रिश्ते दिन-ब-दिन तनावपूर्ण होते चले गये । पत्नी ने दावा किया कि उसके पति ने चार साल से अधिक समय तक उसके साथ मारपीट और क्रूरता भी है । वर्तमान भी उनका रवैया क्रूर हाई है इसी आधार पर पत्नी ने तलाक़ की माँग की थी ।पति पर पत्नी के चरित्र पर बेबुनियाद एवं  झूठे आरोप लगाकर उसे बदनाम करने का आरोप भी पत्नी द्वारा लगाया गया था ।

पक्षों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों पर विचार करने के पश्चात ट्रायल कोर्ट द्वारा इस  निष्कर्ष पर पहुँचा गया   कि पत्नी द्वारा क्रूरता एवं  परित्याग के मुद्दों को साबित कर दिया है, अंततः 1955 अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक की डिक्री पारित करने का निर्देश कोर्ट द्वारा दे दिया गया । याचिका में  पति द्वारा  1955 अधिनियम की धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों की वसूली के लिए एक आवेदन दायर किया । ट्रायल कोर्ट ने पति की याचिका पर विशेष रूप से कोई निर्णय नहीं लिया।

कार्यवाही के दौरान, पति द्वारा  उच्च न्यायालय में एक आवेदन दायर कर लंबित भरण-पोषण का अनुरोध किया साथ ही उसकी कानूनी फीस की प्रतिपूर्ति भी माँगी । इसके साथ साथ  उन्होंने स्थायी गुजारा भत्ता और भरण-पोषण की  याचिका भी लगायी, पति के अनुसार, प्रतिवादी-पत्नी नेशनल हाइड्रो प्रोजेक्ट कॉर्पोरेशन के लिए काम करती है और उसके पास उसके भरण-पोषण के लिए रुपये की पर्याप्त धनराशि मौजूद है । 1955 अधिनियम की धारा 30 -31 (वर्तमान में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 और 25) के तहत 500/- प्रति माह, जो उनकी न्यूनतम मांग हुयी थी । क्योंकि  पति/पत्नी को मस्तिष्क में चोट आयी थी , जिसके परिणामस्वरूप तंत्रिका तंत्र में स्थायी क्षति हुयी थी  इसलिए वह अपना भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त पैसा कमाने में असमर्थ पाया गया था, यह भी पाया गया कि वर्तमान में वह अपने भरण-पोषण के लिए पूरी तरह से अपने करीबी रिश्तेदारों पर निर्भर हैं ।

सभी तर्कों को ध्यान में रख्ये हुए न्यायालय ने यह फ़ैसला किया  कि तलाक या न्यायिक अलगाव की डिक्री पारित होने के बाद, पति या पत्नी के जीवन से अधिक की अवधि के लिए या जब तक वह पुनर्विवाह नहीं किया जाता है  तब तक सतत गुजारा भत्ता या भरण-पोषण देने का आदेश दिया जा सकता है । यदि यह साबित होता है की  पति विवाहेतर  संबंध है  तो उसे दिया गया भरण-पोषण का आदेश रद्द करने योग्य होगा । परिस्थितियों से पता चला कि पति की कोई स्वतंत्र आय न होने के कारण जबकि  प्रतिवादी-पत्नी 1955 अधिनियम की धारा 30 और 31 के तहत पति को समर्थन देने में सक्षम पायी गयी । याचिकाकर्ता प्रतिवादी की स्वयं की आय और अन्य संपत्तियों से आय, याचिकाकर्ता की कमाई की क्षमता के आधार पर  खर्च और स्थायी गुजारा भत्ता और भरण-पोषण का हकदार है । इसलिए मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, न्यायालय ने यह आदेश दिया  कि प्रतिवादी-पत्नी को रुपये का भुगतान करना होगा। 500/- अदालती खर्च एवं  रु. 100/- प्रति माह रखरखाव पेंडेंट लाइट के रूप में और याचिकाकर्ता पति को आवेदन की तारीख से उसकी मृत्यु या पुनर्विवाह, न होने तक जो भी पहले हो, तक स्थायी गुजारा भत्ता दिया जाने का आदेश दिया ।

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रानी सेठी बनाम सुनील सेठी (2011)

रानी सेठी बनाम सुनील सेठी (2011) के मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा निर्णय लेते हुए ,जोकि दिल्ली के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, दिनांक 24.2.2009 के आदेश के खिलाफ निर्देशित हुई थी, प्रतिवादी (पति, सुनील सेठी) द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत याचिकाकर्ता (पत्नी, रानी सेठी) से भरण-पोषण की मांग की गयी थी । ट्रायल कोर्ट द्वारा याचिकाकर्ता के लिए  प्रतिवादी को भरण-पोषण हेतु  20,000/- रुपये प्रति माह एवं  मुकदमे की फीस के रूप में 10,000/- रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया गया था  साथ ही प्रतिवादी के उपयोग हेतु  एक ज़ेन कार भी प्रदान करने का आदेश दिया हुआ था ।

सम्बंधित मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी करते हुए फ़ैसला सुनाया की हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 का उद्देश्य उस पत्नी या पति को उचित राशि का भुगतान करना है, जिसके पास अपने भरण-पोषण या कार्यवाही के खर्चों के लिए आय का पर्याप्त स्रोत मौजूद नही  है।यह पति-पत्नी दोनों के बीच समानता स्थापित करता है इसी टिप्पणी के साथ पति के हक़ में फ़ैसला सुनाया गया ।

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