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हाईकोर्ट- पति नही कर सकता पत्नी की फ़ोन कॉल रिकार्ड यह निजता का उल्लंघन
जैसा कि हम सब जानते है मोबाइल फ़ोन हमारी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है इसके बिना जीवन की कल्पना करना भी अब मुश्किल लगता है,एक तरफ़ यह जहां हमारे लिए काफ़ी उपयोगी है वही दूसरी तरफ़ इसका हमारी ज़िंदगी पर कुछ नकारात्मक असर भी पड़ता है। कुछ इसी तरह का एक मामला पंजाब कोर्ट में आया पंचकूला से जिसमें पत्नी के फ़ोन पर बातचीत ने दोनो के रिश्ते में दरार डाल दी, आजकल अक्सर देखा जा रहा है दंपतियों के बीच कलह का सबसे बड़ा कारण मोबाइल फोन बनता जा रहा है पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा ऐसे ही एक मामले पर कुछ हटके एवं बड़ा फ़ैसला दिया है । पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पति द्वारा अपनी पत्नी की फ़ोन कॉल उसकी चोरी रिकॉर्ड एवं चेक करना पत्नी की निजता का हनन बताया है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि विवाह के बाद किसी पति या पत्नी का निजता का अधिकार छिन नहीं जाता है । शादी से किसी पति को अपनी पत्नी की निजी बातों को रिकॉर्ड करने का कोई अधिकार नहीं मिल जाता है ।यह साफ़ तौर पर उसकी निजता का हनन है।
हाईकोर्ट ने कहा- शादी के बाद छिन नहीं जाता है निजता का अधिकार-
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा यह फैसला एक हैबियस कॉर्पस (बंदी प्रत्यक्षीकरण) याचिका की सुनवाई करते हुए दिया गया है। याचिकाकर्ता पंचकूला में रहने वाली एक महिला है जिसकी एक आइटी प्रोफ़ेशन व्यक्ति से 2012 में शादी हुयी थी एवं नवम्बर 2019 में दोनो अलग हो गये थे पत्नी ने अपनी चार वर्षीय बेटी की कस्टडी दिए जाने की मांग करते हुए याचिका लगायी थी जिसमें पत्नी का कहना था की बेटी की उम्र अभी बहुत कम होने के कारण उसकी कस्टडी माँ को मिलनी चाहिये जबकि उसके पति बेटी को इलाज करवाने के बहाने से ले गये और अपने पास ज़बरदस्ती रखा हुआ है। इतनी छोटी उम्र की बच्ची की कस्टडी पिता के पास होना क़ानूनी रूप से वैध नहीं है। जवाब में पति ने अपनी तरफ़ से पत्नी के ग़लत आचरण के पुराने व्यवहार को कारण बताते हुए बेटी की कस्टडी माँ को न देने की अपील की थी पति द्वारा अदालत में साक्ष्य के तौर पर अपनी पत्नी के फ़ोन से कुछ व्यक्तिगत आडियो एवं वीडियो दस्तावेज के रूप में पेश किए थे।
पति-पत्नी की निजी बातचीत के विवरण में न जाते हुए जस्टिस अरुण मोंगा ने अपने आदेश में कहा कि पत्नी की जानकारी के बिना पति द्वारा उसकी बात को रिकॉर्ड करना, उसके फ़ोन को चोरी चुपके चेक करना निश्चित तौर पर निजता का उल्लघन है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रतिवादी द्वारा पहले से ही पूरी प्लानिंग के साथ पत्नी को ऐसी बातों में फंसाया गया जिससे बाद में सबूत के साथ उसे जिद्दी एवं गुस्सैल साबित करके शर्मिंदा करने हेतु प्रमाण के तौर पर प्रयोग में इन दस्तावेजों को लाया जा सके ।
जस्टिस अरुण मोंगा ने प्रतिवादी द्वारा दिए गये सभी सबूतों एवं दस्तावेज़ों को नज़र में रखते हुए यह भी कहा कि कि चुपके से किया गया प्रतिवादी का इस तरह का व्यवहार उनके इस दावे को मजबूत नहीं करता है कि बच्ची की देखभाल उनके पास माँ से बेहतर तरीक़े से हो सकती है। पांच साल से कम उम्र की होने के नाते सिर्फ मां ही बच्चे की प्राकृतिक आवश्यकताओं को बेहतर तरीक़े से समझ सकती है।
बच्ची की कस्टडी याचिकाकर्ता ( मां ) को दिए जाने का आदेश देते हुए कोर्ट ने यह भी कहा कि पिता अदालत के आदेश सिर्फ इस हैबियस कॉर्पस याचिका पर दिए गए है। इन आदेशों का दोनों पक्षों के बीच अदालत पड़ेगा।
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