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निःशुल्क क़ानूनी सहायता एक संवैधानिक अधिकार – जानें कैसे प्राप्त करें ?

FREE LEGAL AID
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Free legal aid is every citizen’s right

(निःशुल्क क़ानूनी सहायता एक संवैधानिक अधिकार – जानें कैसे प्राप्त करें ? )

भारतीय संविधान के अनुसार यदि देखा जाए तो “सामान न्याय एवं निःशुल्क विधिक सहायता पाना प्रत्येक नागरिक का अधिकार एवं मुहैया करवाना प्रत्येक राज्य का कर्तव्य है,
भारतीय संविधान के अनुसार भारत के समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय की बात की चर्चा सबसे ऊपर रखी गयी है। समाज के समस्त वर्गों को भारतीय न्यायिक प्रणाली में समान न्याय पाने का अवसर मिले, इसलिए भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39 A भारत देश के ग़रीब एवं पिछड़े वर्ग के लोगों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने के हक़ में बनाया गया है।

निःशुल्क क़ानूनी सहायता का अर्थ है कि आर्थिक रूप से कमजोर एवं एवं असक्षम अभियुक्त अथवा प्रार्थी को वक़ील की सेवाएं मुहैया करवाई जाएँ ।

उदाहरण के तौर पर हमारे देश में अधिक संख्या में ऐसे लोग जेलों में बंद हैं जो ग़रीब,अशिक्षित एवं अति पिछड़े वर्ग के लोग हैं। जिनके ऊपर कोर्ट की कार्यवाही चल रही है, जिनको न तो अपने अधिकारों के बारे में पता है न ही उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी है की वह अपने लिए उचित क़ानूनी सुविधा ले सकें। जिसकी वजह से उन्हें बहुत सी परेशानियों से गुजरना पड़ता है यहाँ तकि कि एक छोटे से मामले में उन्हें यदि जेल होती है जिसमें उन्हें आसानी से ज़मानत मिल सकती है उसके लिए भी उन्हें सालों तक या आजीवन जेल की सजा काटनी पड़ती है एवं जुर्म से कई गुना अधिक यातनाओं का सामना करना पड़ता है कई बार इस प्रकार की यातनाओं को एक बेगुनाह इंसान को भी झेलना पड़ता है जिसने कोई गुनाह किया ही नहीं है बस वह ख़ुद को बेगुनाह साबित करने में असमर्थ रहा इसलिए उसे इस सबका सामना ककरना पड़ा, जिसका सबसे मुख्य कारण एवं ज़िम्मेदार निर्धनता एवं अशिक्षा है ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि राज्य सरकार न ही सिर्फ़ उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करे बल्कि उन्हें ज़रूरत पड़ने पर निःशुल्क क़ानूनी सहायता भी प्रदान करे।

इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने “कार्ति II बनाम स्टेटऑफ़ बिहार” में यह निर्णय दिया कि- “न्यायाधीश का यह संवैधानिक ज़िम्मेदारी है कि जब भी किसी असक्षम एवं आर्थिक रूप से कमजोर या असहाय अभियुक्त उनके सामने पेश किया जाये तो वह सबसे पहले यह सुनिश्चित करें कि अभियुक्त को क़ानूनी सहायता किसी वकील के माध्यम से मिल रही है या नहीं यदि नहीं मिल रही है तो सर्वप्रथम एक निःशुल्क वक़ील का प्रबंध किया जाये, या एक ऐसा वकील मुहैया कराया जाए जिसका पूरा ख़र्च राज्य के कोष से वहन किया जाए।”

इस लेख के माध्यम से हम आपको यह बताने का प्रयास करेंगे कि निःशुल्क क़ानूनी सहायता देने के लिए अभी तक सरकार द्वारा क्या व्यवस्थाएं है, तथा इसके पात्र कौन लोग हैं एवं कौन इसके पात्र नहीं हैं, साथ ही इसका लाभ पाने हेतु किन दस्तावेजों की जरूरत पड़ती है , आवेदन हेतु कहाँ पर जाना पड़ता है क्या यह सुविधा आनलाइन भी उपलब्ध है । जिसके बाद आप सभी को निःशुक्ल क़ानूनी सहायता आसानी से पा सकते है।
संस्थागत व्यवस्था –

सन 1987 में भारतीय संसद द्वारा “विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987” को पारित किया गया जो कि 9 नवंबर 1995 से पूरे देश में लागू हुआ, इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य यह है कि समाज के सभी व्यक्तियों को न्याय पाने का समान अवसर मिल सकें। समाज का कोई व्यक्ति न्याय पाने से इसलिए वंचित न रहे कि वह अशिक्षित, ग़रीब, दिव्यांग, या पिछड़े वर्ग से है। इसलिए इस अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रीय, राज्य एवं जिला स्तर पर “विधिक सेवा प्राधिकरण” आपको निःशुल्क क़ानूनी सहायता प्रदान करने हेतु बनाया  गया है।

• यदि वादी या प्रतिवादी का मुक़दमा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चल रहा (विचाराधीन) है, तो वह “राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण” में, या फ़िर सर्वोच्च न्यायालय की “विधिक सेवा समिति” में जाकर क़ानूनी सहायता ले सकता है। उसके लिए यह दोनों विकल्प खुले हैं।
• यदि आपका मामला किसी राज्य के माननीय उच्च न्यायालय में चल रहा (विचाराधीन) है, तो आप यदि चाहें तो उच्च न्यायालय द्वारा गठित “विधिक सेवा समिति” या फिर उसी प्रदेश में स्थित “विधिक सेवा प्राधिकरण” से क़ानूनी सहायता प्राप्त करने के हक़दार हैं। जिसके पूरी जानकारी आपको अपने सम्बंधित न्यायालय से मिल जाएगी।
• इसके उपरांत आपके मामले से सम्बंधित वकील को आपकी विधिक सेवाओं हेतु न्यायालय द्वारा नियुक्त कर दिया जायेगा। जिन लोगों का मुक़दमा माननीय जिला न्यायालय में चल रहा है, वह लोग ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण से भी सेवाएँ ले सकते हैं। अधिकतर यह प्राधिकरण जिला न्यायालय में ही बना होता है।
• आपके राजस्व न्यायालय में चलने वाले मामलों में क़ानूनी सहायता देने हेतु तहसील स्तर पर “विधिक सेवा प्राधिकरण” शुरू किया गया है। तथा क़ानून की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों तक इस बात को पहुँचाने के लिए देश के लगभग सभी
• विश्वविद्यालयों व संस्थानों में “विधिक सेवा केंद्र” खुले हुए हैं। आप यहाँ पर भी जा के अपने मामलों से सम्बंधित विधिक परामर्श ले सकते हैं। प्राधिकरणों पर आधारित इन “विधिक सेवा केंद्रों” का भी अपना वकीलों का समूह होता है, जिससे की जरूरतमंदों को आसानी से वकील मुहैया कराया जा सके।

निःशुल्क क़ानूनी सहायता किन्हे दी जाती है –

1987 के अधिनियम की धारा 12 अनुसार वे सभी लोग क़ानूनी सहायता पाने के हक़दार हैं जो निम्न है –
• अशिक्षित,
• गरीब एवं निर्धन
• SC / ST,
• महिलायें एवं बच्चे
• मानव तस्करी से पीड़ित ( Human Trafficking)
• सामूहिक आपदा से ग्रशित जैसे कि बाढ़, सूखा से परेशान व्यक्ति
• जातीय हिंसा से पीड़ित व्यक्ति वर्ग विशेष पर
• अत्याचार (पीड़ित व्यक्ति अल्प-संख्यक समुदाय से है.)
• दिव्यांग (PWD) औद्यौगिक कामगार ऐसे व्यक्ति जिनकी वार्षिक आय 1,00,000 /- रुपये से काम है।
• एवं समस्त वह व्यक्ति जो क़ानूनी रूप से सक्षम होने की श्रेणी में नही आते है।

आदि निःशुल्क क़ानूनी सहायता कैसे प्राप्त करने की श्रेणी में आते है । ऐसा कोई भी व्यक्ति जो उपरोक्त में से किसी एक भी श्रेणी से है निःशुक्ल क़ानूनी सहायता पाने के लिए अपने नजदीकी प्राधिकरण, समिति एवं विधिक सेवा केंद्र में लिखित प्रार्थना पत्र अथवा फिर प्राधिकरण द्वारा जारी किये गए फॉर्म से आवेदन कर सहायता प्राप्त कर सकता है अगर व्यक्ति लिखने में सक्षम नहीं है, तो वह मौख़िक माध्यम से भी न्यायालय के समक्ष अपना आवेदन कर सकता है, प्राधिकरण में मौज़ूद अधिकारी उस व्यक्ति की बातों को आवेदन पत्र में लिखकर उससे अंगूठा लगवाकर उसकी तरफ़ से आवेदन कर सकता है।

उदाहरण स्वरूप -: शीला बारसे बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र 1983 में माननीय सर्वोच्च न्यायलय द्वारा साफ़ तौर पर कहा गया था कि व्यक्ति की गिरफ़्तारी के तुरंत बाद पुलिस का यह कर्त्तव्य है कि नजदीकी वह यह सुनिश्चित करे कि गिरफ़्तार किया गया व्यक्ति सक्षम है या नहीं यदि नही तो विधिक सहायता केंद्र में इसकी इत्तला की जाये जिससे कि सही समय पर अभियुक्त की क़ानूनी मदद की जा सके। इसके अलावा आप “राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण” जिसे हम NALSA के नाम से भी जानते हैं की वेबसाइट पर जाके देश के किसी भी “विधिक सेवा संस्थान व प्राधिकरण” से क़ानूनी सहायता प्राप्त करने हेतु “ऑनलाइन एप्लीकेशन” फॉर्म ज़रूरी दस्तावेज़ों के साथ अपलोड करके भर सकते हैं। आपकी मदद की जाएगी ।

ज़रूरी दस्तावेज़ :
• मुख्य रूप से आपके पास एक एफिडेविट होना अनिवार्य है जिसमें यह साफ़ होना चाइए की आप किन कारणों से मदद की माँग कर रहें है या किस श्रेणी में आते है एवं आपके द्वारा कोई झोठ या छल नही किया जा रहा है ।
• जिसके साथ में आपका वार्षिक आय प्रमाण पत्र, पहचान पत्र संलग्न होना चाहिए ।
• अन्य दस्तावेजों को आपके केस के आधार पर माँगा जा सकता है ध्यान रखें कि समस्त कागज़ात विधिक सेवा केंद्र या प्राधिकरण में भी साथ ले जाना और दिखाना अनिवार्य होगा ।

किस प्रकार की क़ानूनी सहायता प्रदान की जाती है :

• आपके लिए एक वक़ील नियुक्त किया जायेगा जिसके लिए आपको कोई खर्च नही देना होगा।
• कोर्ट की कार्यवाही में जो भी न्यायालय ख़र्च होगा वह भी दिया जायेगा, कोर्ट के आदेशों की एक प्रति (कॉपी) एवं अन्य दस्तावेज जो भी न्यायालय की कार्यवाही से सम्बंधित होंगे आपको प्रदान किए जायेंगे।
• आपके मामले से सम्बन्धी कागजों को तैयार व प्रिंट का खर्च भी आपको नही देना होगा तथा आपके लिए आपकी भाषा में कोर्ट के आदेशों को अनुवादित भी किया जायेगा तथा आपको दिया जाएगा आदि।

कैसे मामलों में और किन लोगों को निःशुल्क क़ानूनी सहायता नहीं दी जाएगी :

• द्वेषपूर्ण अभियोजन,
• मानहानि, अदालत की अवमानना,
• झूठे साक्ष्य के आधार पर किसी पर दोष लगाना इत्यादि पर आधारित मामले की सुनवायी में किसी भी प्रकार से सहायता प्रदान नही की जाती है ।
• या किसी भी चुनाव से सम्बंधित कोई कार्यवाही करनी हो । इस प्रकार के मामले जहाँ पर दण्ड की आर्थिक राशि 50 /- रुपये से कम है।
• ऐसे अपराध के मामले जो कि आर्थिक एवं सामाजिक क़ानून के ख़िलाफ़ हैं। जैसे की ATM से पैसे चोरी करना, राज्य सम्पदा को नुकसान पहुँचना देश द्रोह आदि ।
• इन समस्त श्रेणी में आने वाले व्यक्ति को क़ानूनी सहायता प्रदान नही की जाती है। यदि अज्ञानता वश दी जा रही है तो पता चलते ही वापस ले ली जाएगी ।
• ऐसा व्यक्ति जो कि खुद से सक्षम है एवं पात्रता मानक को पूरा नहीं करता। या जिसके आवेदन पत्र में ऐसा कोई तथ्य नहीं है, जिससे आधार पर उसको सहायता दी जाये।
• आवेदक द्वारा अधिवक्ता के साथ दुराचरण या अन्य वक़ील से मदद लेना।
• आवेदक की मृत्यु हो जाना। लेकिन यदि मामला सिविल वाद से जुड़ा है तब उसके उत्तराधिकारी को क़ानूनी सहायता प्रदान की जाएगी ।
• ऐसी कार्यवाही जो कि क़ानून व क़ानूनी प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल सिद्ध होती है।

हमारा क़ानून बिना जाति-पाँति तथा धार्मिक, सामाजिक, अमीर गरीब का फ़र्क़ किए बिना सभी को सामान एवं उचित न्याय दिलाना उसका परमकर्तव्य है पर आधारित है, भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ की बड़ी संख्या में जनता निर्धन, साधनहीन और गरीब हैं, सभी को समान न्याय दिलाना तभी सम्भव होगा , जब आपराधिक एवं सिविल मामलों में विवादियों को समुचित एवं समय पर कानूनी सहायता मुहैया कराया जा सके। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39-क निःशुल्क विधिक सहायता राज्य की तरफ़ से नागरिकों के लिए अपने विधिक कर्तव्यों के योगदान को पूर्ण करता है।

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एक समाजसेविका की कलम से –
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