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लोक अदालत ( LOK ADALAT) से कैसे निपटाएँ अपना मुक़दमा बिना कोर्ट गए

LOK ADALAT
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लोक अदालत क्या है और यह  कैसे काम करती है 

लोक अदालत  विधिक सहायता प्राधिकरण द्वारा विधिक व्यवसाय,  विधिक सेवा से सेवानिवृत एवं वरिष्ठ समाज सेवी को चुनकर तीन मुख्य  सदस्यों द्वारा  गठित की जाती है जिनका उद्देश्य कमजोर वर्ग महिलाओं एवं बच्चों तथा श्रमिकों के के हित में कार्य करना है जिसकी  संकल्पना हमारे गाँवों में लगने वाली पंचायतों पर आधारित है।) इसके गठन का आधार 1976 का 42वां संविधान संशोधन है, जिसके अंदर अनुच्छेद 39-A में आर्थिक एवं किसी अन्य अक्षमता के कारण जो न्याय से वंचित रह जाते है उनके  हित को  जोड़ा गया है ।

लोक अदालत के गठन का मुख्य कारण –
यह कि आर्थिक रूप से कमजोर होने कि वज़ह से समाज के  बहुत सारे लोग न्याय पाने के लिए संसाधन नहीं जुटा पाते है एवं न्याय से वंचित रह  जाते है।
यदि वह कोर्ट तक पहुँच भी जाते हैं, तो करोड़ों मुक़दमे लंबित एवं  अपूर्ण होने के कारण उनको समय से न्याय नहीं मिल पाता है।
देर  से  न्याय मिलने का डर  एवं आर्थिक एवं समय के नुक़सान का डर ख़त्म करना ।
निम्न  बातों को ध्यान में रखते हुये, शासन ने  यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि  कि देश का कोई भी नागरिक आर्थिक या किसी अन्य अक्षमताओं के कारण नयया से वंचित न रह जाए। इसी दायित्व को निभाने के लिए विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 को पारित किया गया। यह अधिनियम 9 नवंबर, 1995 को लागू हुआ जिसके साथ विधिक सहायता एवं स्थायी लोक अदालतें अस्तित्व में लाई गयी ।
इस लेख के माध्यम से हम आपको  लोक अदालत का कार्य शक्तियाँ एवं सभी पहलुओं से अवगत करने का प्रयास करेंगे । साथ ही यह भी बताएँगे की किस प्रकार के समझौते एवं  किस आधार पर लोक अदालत में ज़ाया जा सकता है
आप अपने विवाद को लेकर आसानी से अपने यहाँ के सम्बंधित लोक अदालत जा सकते हैं, वो भी बिना किसे खर्चे के,  विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम,1987 की धारा 18(1) के अनुसार इसे दो भागों में हम समझने का प्रयास करेंगे –
पहला – मान लीजिये आपका विवाद न्यायालय में लंबित है,और आपको  पता चलता है कि  मुक़दमे को निपटाने के लिए अदालत अधिक समय लेगी।जिसके लिए आप तैयार नहीं है इस स्थित में आप कोर्ट की अनुमति एवं विपक्ष की सहमति से लोक अदालत में जा सकते हैं, और विपक्ष के साथ आपसी बात-चीत से अपना मामला शांति एवं सही ढंग से हल कर सकते हैं। समझौते के पश्चात आप पहले से जमा की गयी अपनी कोर्ट की फ़ीस भी वापस ले सकते है।
दूसरा – मान लीजिए  कि आपका झगड़ा हुआ और बिना  किसी अदालती कार्यवाही शुरू हुए आप सीधे स्थायी लोक अदालत पहुँच गए । इसमें गौर करने वाली बात यह है  कि स्थायी लोक अदालत में जाने के लिए पक्ष-विपक्ष दोनों का राज़ी होना आती आवश्यक है  तभी तो आपसी सामंजस्य से मामला हल किया जा सकेगा ।

लोक अदालत में कैसे मामले जा सकते हैं –
आपसी ताल-मेल से हल न हो पाने वाले सभी दीवानी मामले को लोक अदालत में लाकर निपटाया जा  सकता है, जैसे –
दीवानी सम्बंधित मामले।
रेलवे मुआवज़ा
श्रम विवाद भूमि अधिग्रहण
मनरेगा मामले
बिजली और पानी से जुड़े मामले
बैंक ऋण सम्बंधित मांमले।
वैवाहिक एवं पारिवारिक झगड़े।
राजस्व सम्बंधित मामले।
दाखिल ख़ारिज भूमि के पट्टे।
वन भूमि सम्बंधित मामले।
फौजदारी सम्बंधित मामले।
मोटर वाहन दुर्घटना मुआवजा सम्बंधित दावे।
आपदा मुआवज़ा जैसे कि फसल में आग लग जाना इत्यादि

लोक अदालतों के विभिन्न स्तर एवं  प्रकार –
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 के अनुसार लोक अदालत मुख्यतः दो प्रकार की होती है एक स्थायी लोक अदालत और दूसरी  अस्थायी लोक अदालत जिसका आयोजन समय-समय पर राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण सर्वोच्च न्यायालय से लेकर तहसील स्तर तक करवाया जाता है ।

स्थायी लोक अदालत एवं  अस्थायी लोक अदालत में अंतर-
स्थायी लोक अदालत में आप सीधे अपना मामला ले के जा सकते हैं, परंतु  अस्थायी लोक अदालत में आपका मामला कोर्ट की अनुमति के बग़ैर नहीं जा सकता है । स्थायी लोक अदालत सिर्फ 1 करोड़ तक के मसलों का निपटारा करवा सकती है, जबकि अस्थायी लोक अदालत पर ऐसी कोई सीमा नहीं रखी गयी  है। स्थायी लोक अदालत के अंदर आप का मामला बात-चीत से हल ना होने पर न्यायालय अपना निर्णय सुना सकती  है जो कि दोनों पक्षों पर बाध्य होता है  । लेकिन यदि  ऐसी बात अस्थायी लोक अदालत में होगी तब आप को कोर्ट जाना होगा क्योंकि यह लोक अदालत सिर्फ मध्यस्थता करने तक ही अधिकृत है। इसके अलावा दोनों अदालतों का जो भी फ़ैसला या निर्णय होगा आप उसके लिए बाध्य होंगे ।

तहसील स्तर–
पर अगर आपका मामला तहसील के राजस्व कोर्ट में लंबित या सम्बंधित है, या फिर उसके अधिकार क्षेत्र में आता है। तो उस विवाद को तहसील स्तर पर आयोजित होने वाली लोक अदालत में लाया एवं सुलझाया जा सकता है । तहसील विधिक सेवा प्राधिकरण इस प्रकार की लोक अदालत का आयोजन समय-समय पर करती रहती है। जिसका पता आप तहसील जाकर  लगा सकते हैं ।

जिला स्तर–
यहाँ पर लोक अदालत का आयोजन जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा  आयोजित किया जाता है, जिसके अंदर अगर आपका मुक़दमा जिला न्यायालय में चल रहा है या फिर उसके अधिकार क्षेत्र में आता है, तो आप इस लोक अदालत में जाने के हक़दार हैं।

राज्य स्तर –
एवं उच्च न्यायलय स्तर पर अगर आपका विवाद आपके प्रदेश के उच्च न्यायालय के समक्ष चल रहा है,और आप तुरंत न्याय पाना चाहते हैं तब आपके पास दो विकल्प होंगे। पहला यह कि आप, खुद उच्च न्यायालय द्वारा आयोजित होने वाली लोक अदालत में चले जायें और दूसरा विकल्प यह कि आप राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा गठित लोक अदालत में चले जायें । दोनों विकल्प आपके लिए खुले हैं चुनना  आपको है ।
राष्ट्रीय  स्तर
–
सबसे पहले तो यह स्पष्ट हो कि राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन पूरे देश में कुछ समय के अंतराल पर  राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा दिए गये  दिशा-निर्देशों पर आयोजित किया जाता है  सभी स्तरों पर लोक अदालत को सुचारु रूप से चलाने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय विधिक सहायता प्राधिकरण की होती है ।

सर्वोच्च न्यायलय स्तर पर _
सर्वोच्च न्यायालय के परिषर में भी लोक अदालतों का आयोजन समय समय पर किया जाता है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय की अनुमति से  मध्यस्थता  के माध्यम से विवादों का निपटारा कराया जाता है ।
अन्य स्तरों की तरह यहाँ भी एक स्थायी लोक अदालत को बनाया गया है। परंतु  यहाँ पर आप अपना मामला तभी ला सकते है जब वह मामला सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से सम्बंधित हो।

मोबाइल लोक अदालत-
देश के विभिन्न हिस्सों में मोबाइल लोक अदालतें भी आयोजित की जाती हैं, जो विवादों को हल करने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाती हैं। आपके विवादों का समाधान आपके गाँव एवं  घर जाकर भी किया जाता है ।

लोक अदालत की पीठ का गठन एवं लोक अदालत की शक्तियाँ क्या हैं–
लोक अदालत की पीठ का गठन विधिक सहायता प्राधिकरण के सचिव द्वारा ही लोक अदालत की तीन सदस्यों वाली पीठ का गठन किया जाता है , जिसके अंदर एक मौजूदा या फिर रिटायर न्यायाधीश होना अनिवार्य है  दूसरा वक़ील और तीसरा  सामाजिक कार्यकर्ता  रखा जाता है।

लोक अदालत की शक्तियाँ –
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 के अनुच्छेद 22 के अनुसार लोक अदालतों को निम्नलिखित शक्तियों प्रदान की गयी है किसी भी साक्षी या पार्टी को नोटिस दे करके बुलाना, दस्तावेज़ को किसी न्यायालय या कार्यालय से मंगवाना एवं उसकी जाँच करना शपथ पत्र पर साक्ष्यों को ग्रहण करवाना आदि शामिल है।
प्रत्येक लोक अदालत द्वारा की गयी कार्यवाही को न्यायिक कार्यवाही का दर्ज़ा दिया गया है। लोक अदालत की शक्तियाँ सिविल न्यायालय की शक्तियों के बराबर ही  मानी जाती है।

लोक अदालत मामले को कैसे सुलझती है-
मामले का उल्लेख करने के बाद, लोक अदालत पार्टियों के साथ संवाद एवं सम्पर्क करके दोनो पक्षों को  बैठक के लिए आमंत्रित करती है या लिखित या मौखिक रूप से आपसे संवाद कर सकते हैं। इस चरण में, आपके मामले के अनुसार आपसे चर्चा की जाती है और यदि कोई एक पक्ष किसी अन्य पार्टी से जानकारी को गोपनीय रखना चाहता है, तो यह भी किया जा सकता है। मामले को निपटाने के लिए दोनों पक्षों से सुझाव भी माँगा जाता है । अंततः जब अदालत को लगता है कि विवाद का निपटारा पार्टियों द्वारा स्वीकार्य हो सकता है, तब विवाद को हल किया जाता है। लोक अदालत कोई सीधा फैसला नहीं करती है इसके बजाय दोनों पक्षों के बीच समझौता के आधार पर निर्णय लिया जाता है। लोक अदालत के सदस्य विवाद को समाधान तक पहुंचने हेतु अपने प्रयासों में स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से पार्टियों की सहायता करते है।

दोनों पक्षों के सहमत ना होने पर क्या विकल्प हैं?
वैसे तो भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पीटी थॉमस बनाम थॉमस में यह कहा था कि- “लोक अदालत द्वारा घोषित निर्णय अंतिम एवं बाध्यकारी होता है।”जिसका अर्थ है आप आगे अपील नहीं कर सकते है ।परंतु बाद में कई उच्च न्यायालयों द्वारा यह बोला गया कि अपील कर सकते हैं, परन्तु आप अपील एक स्तर ऊपर वाले न्यायालय में करेंगे । जैसे कि मान लीजिये जिला स्तर की लोक अदालत ने आपका फैसला कर दिया है और आप असंतुष्ट हैं तब आप इस स्थित में जिला न्यायालय ना जाकर माननीय उच्च न्यायालय में अपील करने में सक्षम होंगे ।

लोक अदालत के मुख्य लाभ क्या हैं –
अधिवक्ता / वकील पर होने वाले खर्च से बचते है।
कोई न्यायालय शुल्कः नहीं लगता है।
पक्षकारों के मध्य उतपन्न हुए विवादों का निपटारा आपसी सहमति एवं  सुलह करवा दिया जाता है।
मुआवजा व् हर्जाना जल्दी मिल  जाता है।
पहले से मुकदमें में लगा न्यायालय शुल्क भी  वापस मिल जाता है।
किसी भी पक्षकार को दण्डित नहीं किया जाता है।
उदाहरण के तौर पर अगर देखा जाये तो पूरे देश में लगभग तीन करोड़ के आस-पास मामले न्यायालयों  में विचाराधीन पड़े हैं, ऐसे में समय रहते न्याय पाना बहुत मुश्किल काम है। इसलिए त्वरित व निःशुल्क न्याय दिलाने के लिए लोक अदालत का विकल्प कारगर माना जाता है। ध्यान रखें योग्य बात यह है कि राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन हर दो महीने के अंतराल पर  किया जाता है।

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