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What is dowry – and what are the rights to prohibit dowry Act 1961

Dowry Prohibition Act 1961
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Dower

जैसा की हम सब जानते हैं कि समाज में दहेज लेने एवं देने दोनो का रूप बहुत हाई व्यापक है तथा यह बहुत व्यापक रूप से अपनी जड़ भी मज़बूत कर चुका है जिसके चलते समाज में कई तरह के अपराध की घटनाएँ भी सुनने में आती रहती है एवं इसपर क़ाबू पाने के लिए क़ानून द्वारा कई ठोस कदम भी उठाए गये है इस पोस्ट के माध्यम से हम जानेंगे की दहेज देने एवं लेने पर क़ानून द्वारा किस प्रकार के सजा से दंडित किया जा सकता है तथा इसके क़ानूनी उपचार क्या है prohibit dowry Act 1961.

दहेज का अर्थ उस  संपत्ति या मूल्यवान  वस्तु से है जो विवाह के पहले विवाह के समय या उसके बाद विवाह के संबंध में एक पक्ष किसी भी प्रकार से दूसरे पक्ष को देता है या देना स्वीकार करता है, लेकिन यह क़ानून मेहर पर लागू नहीं किया जाता है जो मुस्लिम पर्सनल लॉ (या शरीयत कानून )के अधीन होता है  । दहेज निषेध कानून समस्त  समुदायों एवं धर्मों को मानने वालों पर समान लागू होता है ।

 

दहेज लेने एवं देने पर सजा :-  

  • यदि कोई व्यक्ति दहेज लेने या देने या उसके लिए उकसाने का दोषी पाया जाता है तो उसे 5 साल का कारावास व जुर्माना जो कमसे कम 15000 रुपए या दहेज के मूल्य के हिसाब से जो भी अधिक हो वह सजा दी जा सकती  है।
    उपहार एवं दहेज में अंतर :-उपहार स्वेच्छा से दिए जा सकते हैं, इसके साथ ही ये उपहार रीति रिवाज एवं परंपरा के अनुसार दिए जाने चाहिए तथा देने वाले की आर्थिक क्षमता के मुताबिक इसका मूल्य भी होना चाहिये ।दहेज माँगकर या जबरन बहलाफुसलाकर या या डरा धमकाकर वसूला जाता है।
  • किसी भी प्रकार से दहेज की मांग किए जाने पर कम से कम छह माह एवं अधिकतम दो वर्ष का कारावास हो सकता है साथ ही साथ 10,000 रुपए या उस से अधिक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है ।जुर्माने की राशि न्यायलय द्वारा तय की जाती है।
  • मीडिया में या किसी भी अन्य माध्यम से दहेज देने एवं लेने का विज्ञापन देना भी अपराध है । इसका दोषी पाए जाने पर 6 माह से लेकर 5 साल का कारावास या 15000 रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है ।

दहेज का हस्तांतरण-

  • शादी से पहले दहेज में प्राप्त संपत्ति को विवाह होने के तीन महीने के भीतर वधू को दे दिया जाना चाहिए।ऐसा न करने पर आप स्त्री धन पर जबरन अपना हक़ बनाने एवं बधू को उसका हक़ न देने के दोषी पाए जाते है।जिसके लिए आप सजा एवं जुर्माने के हक़दार होगे।
  • अगर दहेज शादी के समय या उसके बाद प्राप्त हुआ है तो दहेज प्राप्त होने की तारीख से तीन महीने के भीतर वधू को दे देना चाहिए।
  • यदि वधू नाबालिग है तो ऐसी स्थिति में वधू के 18 वर्ष के होने पर तीन महीने के भीतर उसे दहेज का सामान दे दिया जाना चाहिए।
  • वधू को तीन महीने के भीतर दहेज का सामान ना देने पर आरोपी व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 405 (न्यास भंग) और 406 (“Criminal Breach of Trust”) के अंतर्गत  7 वर्ष तक के  कारावास या जुर्माना हो सकता है या  दोनों से दंडित किया जा सकता है ।
  • यदि किसी महिला की मौत विवाह के 7 साल के भीतर हो जाती है तो उसकी सारी संपत्ति उसके बच्चों को दी जायेगी । बच्चे न होने की स्थिति में उसकी सारी संपत्ति को उसके माता-पिता को सौंपा जा सकता है ।या उसके माता पिता एवं उनके परिवार से सम्बंधित व्यक्ति को जिससे उसका खून का रिश्ता हो।

दाम्पत्य अधिकारों से वंचित करना :-

  • दहेज लाने के लिए महिलाओं को उनके दाम्पत्य अधिकारों से वंचित रखने, उन्हें प्रताड़ित करने एवं उनका शोषण करने के दोषियों को क़ानून द्वारा कठोर सजा का प्रावधान है । दोषी व्यक्तियों को एक वर्ष का कारावास तथा 500 रुपए की जुर्माने की सजा हो सकती है ।
  • पति जो अपनी पत्नी को दहेज के कारण उसके दाम्पत्य अधिकार से उसे वंचित करते हों उन्हें एक वर्ष का कारावास तथा 10,000 रुपए जुर्माने की सजा या दोनो भी हो सकती है । जुर्माने की रकम पत्नी को न्यायालय के आदेश पर मुआवजे के तौर में भी दी जा सकती है।

गुजारा भत्ता एवं खर्चे :-

  • पति के दोषी पाए जाने के बाद महिला 2 महीने के भीतर गुजारा भत्ता एवं  खर्चे हेतु आवेदन करने के लिए स्वतंत्र है । आवेदन मिलने के बाद कोर्ट गुजारा भत्ता हेतु आदेश दे सकता है । ऐसा आदेश जारी करने से पहले कोर्ट दोनों पक्षों को उचित सुनवाई का मौका भी देता है जिसके अनुसार गुजारे भत्ते की रकम तय कर दी जाती है  ।इस अपराध पर मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेट विचार कर सकते हैं ।
  • कोर्ट में मामले की शिकायत पुलिस अफसर, पीड़ित व्यक्ति या उसके रिश्तेदार अथवा माता-पिता, या कोई भी मान्यता प्राप्त कल्याणकारी संस्था द्वारा भी की जा सकती है । या फिर कोर्ट अपनी ओऱ से भी अपराध के तथ्यों के विषय में जानकारी होने पर विचार शुरु कर सकती है ।

दहेज गंभीर अपराध है –
पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज होने के बाद पुलिस अधिकारी तुरंत उस पर कार्यवाही कर जांच की प्रक्रिया शुरु कर सकता है, लेकिन बिना वारंट या मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की शक्ति प्राप्त नहीं है ।

दहेज का अपराध गैरजमानती है-
बिना मजिस्ट्रेट के आदेश पर आरोपी को जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है । इस तरह के अपराध आपसी समझौते से नहीं निपटाए जा सकते हैं तथा न ही शिकायतकर्ता दूसरे पक्ष के साथ आपसी समझौता होने पर केस वापस ले सकता है मामला न्यायालय में पहुँचने के बाद सम्बंधित केस के निर्णय एवं फ़ैसले लेने का हक़ सिर्फ़ मजिस्ट्रेट को ही होता है ।

  • दहेज निषेध अधिनियम के अंतर्गत कभी भी एवं कहीं से भी शिकायत दर्ज करायी जा सकती है ।
  • दहेज संबंधी अपराध में आरोपी व्यक्ति की यह जिम्मेदारी है कि वह सिद्ध करे कि उसने ऐसा अपराध नहीं किया है तथा उसपर लगाए गये सभी आरोप झूठे है ।
  • राज्य सरकारों के पास यह शक्ति है कि वह  दहेज निषेध अधिकारी की नियुक्ति करे।
  • तथा राज्य सरकार सलाह समिति का भी गठन करे । जिसका कार्य दहेज निषेध अधिकारियों को सलाह परामर्श व सहयोग देना रहे ।

दहेज हत्या :-

  • विवाह के सात साल के भीतर हुयी किसी भी प्रकार से संदिग्ध मौत दहेज हत्या मानी जाती है दहेज की मांग को लेकर अगर किसी महिला की मौत विवाह के सात साल के भीतर संदिग्ध हालत में हो, जलने के कारण या शरीर पर किसी भी प्रकार की चोट के कारण हो , पति व ससुराल वालों की प्रताड़ना आदि की वजह से मौत हुई हो तो उसको दहेज हत्या के दायरे में रखा जाता है तथा संदिग्ध माना जाता है ।
  • आम तौर पर इस तरह के मामले में पति या उसके परिवार वालों एवं रिश्तेदारों को महिला की मौत के लिए दोषी माना जाता है ।
  • इस तरह में मामले में दोषी व्यक्ति को 7 वर्ष  से 20 वर्ष  (आजीवन कारावास) तक की सजा दी जा सकती है।
  • दहेज हत्या गंभीर अपराध है –
    इस तरह के मामले में पुलिस दोषी व्यक्ति को बिना वारंट के भी गिरफ्तार कर सकती है ।
  • केवल सेशन कोर्ट ही दहेज हत्या के अपराध के मामले में विचार कर सकता है ।

मजिस्ट्रेट की जांच :-

  • इस तरह के मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा जांच का आदेश दिए जा सकते है जब किसी व्यक्ति की पुलिस संरक्षण में मृत्यु हो या कोई महिला खुदकुशी करे या उसकी विवाह से 7 साल के भीतर संदेहास्पद स्थिति में मृत्यु हो गयी है इस सभी मामलों में मजिस्ट्रेट द्वारा जाँच के आदेश दिए जा सकते है ।
  • अगर विवाहित महिला की मृत्यु विवाह के 7 साल में हो तथा पक्षकार द्वारा कोर्ट यह कहा जाए कि उसके पति या ससुराल वालों ने उसे सताया था तथा परिवार वालों को इस बात का अंदेशा हो की उसकी मौत में परिवार वालों का हाथ है या उसकी मौत के  ज़िम्मेदार परिवार वाले ही  हैं।  तब बाकी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट यह मान सकती है कि उस महिला को उसके पति व ससुरालवालों ने खुदकुशी के लिए उकसाया है ।

दहेज देने के अपराध में कैसे हुयी सजा एवं जुर्माना :-

जब पत्नी ने पति पर लगाया था दहेज उत्पीड़न का केस, सुनवाई के दौरान पिता ने दहेज देने की बात कबूली मौजूदा जानकारी के मुताबिक, दीपक नगर के विजय अग्रवाल की बेटी रूही अग्रवाल की शादी 16 जनवरी 2007 को नेहरू नगर के निमिष अग्रवाल (38) से हुई थी। 7 मई 2016 को रूही ने सुपेला थाने में निमिष के खिलाफ दहेज मांगने की रिपोर्ट लिखाई थी । पुलिस ने निमिष को दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत आरोपी बनाया। केस फास्ट ट्रैक कोर्ट में पहुंचा, जहां जज हरीश कुमार अवस्थी की अदालत में सुनवाई शुरू की गयी । इसी दौरान रूही एवं  उनके पिता विजय अग्रवाल ने दो किस्तों में दहेज की रकम देने की बात स्वीकार की । बस, इसी को आधार बनाकर आरोपी निमिष ने न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में प्रार्थियों के खिलाफ याचिका लगा दी। इस पर मंगलवार को सुनवाई हुई। कोर्ट ने रूही व विजय अग्रवाल पर मामला दर्ज करने का आदेश जारी किया । 

पांच साल तक की हो सकती है सजा:-

दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा 3 के तहत अगर कोई व्यक्ति दहेज देगा या लेगा या फिर दहेज देने-लेने के लिए दुष्प्रेरित करेगा तो इस नियम के तहत आरोपी होगा। आरोप सिद्ध होने पर कम से कम पांच साल की सजा और 15 हजार से दहेज की रकम तक दोनों में जो अधिक होगा, का जुर्माना होगा। यह गैर जमानती धारा है।

दहेज देने के आरोप में प्रकरण दर्ज करने का छत्तीसगढ़ में यह पहला मामला है। अभी तक राज्य में ऐसा मामला नहीं आया है। ऐसे आदेश से दहेज लेने और देने, दोनों मामलों में कमी आएगी ।

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