जैसा कि हम सब जानते है कि बेटे और बेटी दोनो को माता पिता की सम्पत्ति में कानूनी रूप से बराबर का हक़ दिया है लेकिन क्या विवाहित बेटी को भी समान हक़ मिलता है यह सवाल सबसे पहले लोगों के दिमाक में आता है और साथ ही यह सवाल भी की विवाहित बेटी को भी क्या अनुकम्पा नियुक्ति में भी उसे बेटे के बराबर ही हक़ अधिकार है या नहीं ।तो आइए जानते है कि क्या विवाहित बेटी को अनुकम्पा नियुक्ति में हिस्सा मिलता है और क्या है विवाहित बेटी के अनुकम्पा नियुक्ति में क़ानूनी हक़ और अधिकार जानते है उड़ीसा हाई कोर्ट के इस जजमेंट से –
उड़ीसा हाईकोर्ट द्वारा अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह मानते हुए निर्णय सुनाया कि एक ‘विवाहित बेटी’ को उसके पिता की मृत्यु के बाद पुनर्वास सहायता योजना के तहत लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है। डॉ जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने अपने पिता की मृत्यु पर एक विवाहित बेटी के अनुकंपा के आधार पर रोजगार पाने के अधिकारों की पुष्टि करते हुए कहा, ” इस अदालत का यह विचार है कि विवाह अपने आप में कोई अयोग्यता नहीं है और केवल विवाह के आधार पर पुनर्वास सहायता योजना के तहत नियुक्ति प्राप्त करने से ‘विवाहित’ बेटी के विचार को रोकना और प्रतिबंधित करना स्पष्ट रूप से मनमाना और संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन होगा , जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16(2) में परिकल्पित है।”
याचिकाकर्ता के पिता की मृत्यु 23.02.2001 को हुई थी । जो प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। उनके आश्रितों उनकी में पत्नी और दो बेटियां शामिल थीं। याचिकाकर्ता मृतक की बड़ी बेटी है, जिसकी शादी हो चुकी है। अपने पिता की मृत्यु के बाद, उन्होंने पुनर्वास सहायता योजना के तहत तृतीय श्रेणी के गैर-शिक्षण कर्मचारियों के पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया। आवेदन पत्र प्राप्त होने पर याचिकाकर्ता के मामले में स्कूल निरीक्षक द्वारा नियुक्ति के लिए सिफारिश की गई थी, याचिककर्ता का कहना था की बाद में कम योग्य उम्मीदवारों की भी नियुक्ति की गई और योजना के तहत नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ता के मामले को नजरअंदाज कर दिया गया था । जिससे व्यथित होकर, उसने ओडिशा प्रशासनिक न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया, और अपने हक़ की माँग की जिसमें अधिकारियों को उसके आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया गया । और स्कूल इंस्पेक्टर द्वारा उक्त पद पर नियुक्ति हेतु उनके अभ्यावेदन को केवल इस आधार पर खारिज कर दिया कि वह ‘विवाहित’ थी। इसलिए, उसने इस रिट याचिका के माध्यम से स्कूल निरीक्षक के उपरोक्त अस्वीकृति आदेश को चुनौती दी। जिसमें विचार करने के बाद फैसला कोर्ट ने उमेश कुमार नागपाल बनाम हरियाणा राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए , जिसमें यह माना गया था कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य परिवार को उस संकट से जूझने में मदद करना है जो उन परिस्थितियों में उन पर पड़ता है, ताकि परिवार कठोर परिस्थितियों से बचाया जा सके। जस्टिस पाणिग्रही ने सीबी मुथम्मा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का हवाला दिया। उन्होंने उड़ीसा हाईकोर्ट द्वारा क्षीराबादी बाला बेहरा बनाम उड़ीसा प्रशासनिक न्यायाधिकरण में की गई निम्नलिखित टिप्पणियों करते हुए कहा –
“ऐसा नहीं है कि एक बेटी अपनी शादी के बाद पिता या मां की बेटी नहीं रह जाती है और उस पर उनकी देखभाल की जिम्मेदारी नहीं रह जाती। इस आधार पर एक बेटी को अपनी जिम्मेदारी से बचने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि वह अब विवाहित है, इसलिए, राज्य सरकार की नीति, जिसके तहत सरकार द्वारा एक ‘विवाहित’ बेटी को अयोग्य घोषित किया जाता है, मनमाना और भेदभाव पूर्ण है, साथ ही कल्याणकारी राज्य के रूप में राज्य सरकार का प्रतिगामी कदम है, जिस पर इस न्यायालय द्वारा अनुमोदन की मुहर नहीं लगाई जा सकती है।” तदनुसार, न्यायालय ने माना कि अनुकंपा नियुक्ति पर विचार के लिए ‘विवाहित’ बेटी को लाभ देने से इनकार करना अनुचित और शून्य है। अत: विद्यालय निरीक्षक के आक्षेपित आदेश को रद्द किया जाता है।
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